स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक तेल चमत्कारिक तेलउमेश पाण्डे
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लौंग का तेल
लौंग के विभिन्न नाम
हिन्दी- लौंग, लवंग, संस्कृत- लवंग, देवकुसुम, मराठी- लवंग, गुजरातीलवंग, अरबी- करन्फ, फारसी- मेखक, अंग्रेजी- Clove-क्लोव, लेटिन- साईझिजियम एरोमेटिकम (Syzygium aromaticum) या यूजेनिमा केरियोफायल्य (Eugenia caryophyllus)
यह वनस्पति जगत के मायरटेसी (Myrtaceae) कुल में आता है।
लौंग का पौधा मलक्का द्वीप समूह का आदिवासी पौधा है किन्तु अति प्राचीनकाल से ही इसके गुणों का विस्तृत अध्ययन भारत में हुआ है। यही कारण है कि भारतीय आयुर्वेदिक एवं प्राचीन ग्रंथों में इसका विस्तृत उल्लेख प्राप्त होता है।
लौंग के वृक्ष छोटे कद वाले, सुन्दर तथा सदैव हरे रहने वाले होते हैं। ये वर्षपर्यन्त फलते-फूलते रहते हैं। इसके वृक्ष का नीचे का घेरा अधिक तथा ऊपर की तरफ उत्तरोत्तर कम होता जाता है। पत्तियां साधारण प्रकार की डंठल युक्त, लगभग 10 से. मी. तक लम्बी तथा 2 से 3 से.मी. तक चौड़ी, बीच में अधिक चौड़ी तथा आधार एवं शीर्ष पर संकरी होती हैं। इनकी किनोर सलंग तथा शीर्ष नुकीला होता है। पत्तियां चमकीले हरे रंग की होती हैं जिन्हें मसलकर सूधने पर मनभावनी खुशबू आती है। पुष्प छोटे-छोटे, हल्के तथा बैंगनी रंग के होते हैं। ये अत्यन्त सुगंधित होते हैं। कलिकायें प्रारम्भ में सफेद किन्तु बाद में हरी और अंत में लाल हो जाती हैं। इसी समय इन्हें संग्रहित किया जाता है। इन्हें खुली हवा में सुखाया जाता है। ये ही लौंग के नाम से बिकती हैं।
लौंग का तेल आसवन विधि से प्राप्त किया जाता है। इसमें 70 से 90 प्रतिशत यूनेनॉल (Eugenol) होता है। शेष प्रतिशत में कैरियो फायलीन्स (Caryophylenes), युजेनॉल एसीटेट, कुछ अन्य ईस्टर्स, कीटोन्स तथा एल्कोहॉल्स (Alcohols) होते हैं।
आयुर्वेद की औषधियों में लौंग के तेल का प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेदानुसार यह तेल ताजा होने पर पीला तथा कुछ दिन बाद गहरे भूरे रंग का हो जाता है। यह उत्तम दीपन, पाचन, रुचिवर्द्धक, वातानुलोमन, शूल को नष्ट करने वाला, श्लेष्म निस्सारक, श्वासहर, वाजीकारक, मूत्रजनन, ज्वरध्न तथा आम पाचन होता है। इसका उत्सर्ग स्वेद, श्वास, मूत्र, पित आदि के द्वारा होता है।
लौंग के तेल का औषधीय महत्त्व
लौंग के तेल के बारे में अधिकांश व्यक्ति काफी कुछ जानते हैं। प्राचीनकाल से ही इसका तेल विभिन्न रोगों के शमन के लिये प्रयोग में लाया जाता रहा है और आज भी इसका महत्व वैसा ही बना हुआ है। आयुर्वेद ने इसके तेल के औषधीय महत्व को स्वीकार किया है। अधिकांश परिवारों में इसे अवश्य रखा जाता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर काम में लाया जा सके। आज भी घरों में अनेक सामान्य रोगों में लौंग के तेल का प्रयोग होता है। यहां पर इसके कुछ चमत्कारिक एवं उपयोगी औषधीय प्रयोगों के बारे में बताया जा रहा है:-
कुक्षि शूल में- कुक्ष में शूल होने पर लौंग के तेल की 4 बूद की मात्रा एक बताशे में डालकर सेवन कर लें। इससे पर्याप्त लाभ होता है।
दांतों में कीड़ों के कारण अथवा अन्य कारणों से दर्द होने पर- दांतों के रोगों में लौंग का तेल अत्यन्त प्रभावी है। दांतों में दर्द होने पर प्राथमिक चिकित्सा के लिये तथा तुरन्त पीड़ा मुक्ति के लिये लौंग का तेल ही प्रयोग किया जाता है। दांतों में कीड़ों के उत्पन्न हो जाने के कारण कभी-कभी काफी भयंकर दर्द होता है। किसी अन्य कारण से भी दांतों में पीड़ा होती है। ऐसी किसी भी पीड़ा में रूई के एक फोहे में 4-6 लेना चाहिये। ऐसा करने से दर्द में तुरन्त आराम हो जाता है। कीड़े जनित दर्द में तो यह उपचार रामबाण है।
केशों की वृद्धि एवं स्वास्थ्य हेतु- लगभग 100 ग्राम नारियल के तेल में 20 बूंद लवंग का तेल मिलाकर भली प्रकार हिला लें ताकि दोनों भलीभांति मिल जायें। यह एक अनुपात है। इस तेल को नित्य सिर में लगाने से बाल चमकदार होते हैं। उनका रूखापन दूर होता है। बालों का दोमुँहा होना दूर होता है, रूसी नहीं होती तथा बाल असमय सफेद नहीं होते एवं पर्याप्त लम्बे हो जाते हैं। असंख्य युवतियों द्वारा किया गया यह एक अनुभूत प्रयोग है।
जोड़ों के दर्द पर- जोड़ों में होने वाले दर्द के उपचारार्थ भी लौंग का तेल अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हुआ है। इसके लिये आपको इस विशेष तेल का निर्माण करना होगा। इसके लिये 100 मिली, सरसों का तेल लेकर एक पात्र में गर्म करें। इसमें 5-6 कलियां लहसुन की कूट कर डाल दें। जैसे-जैसे तेल गर्म होगा वैसे-वैसे ही लहसुन भुनने लगेगा। कुछ समय बाद ही लहसुन का रस पूरी तरह से जल जायेगा। तब तेल को आंच से उतार कर ठण्डा करके छान लें। इसे एक शीशी में डालकर इसमें 5 से 10 ग्राम लौंग का तेल मिला दें। इस मिश्रण से जोड़ों पर मालिश करने से जोड़ों का दर्द ठीक होता है अथवा उनमें. पर्याप्त लाभ होता है।
जीभ मोटी हो जाने पर- जिन लोगों की जीभ सुपारी इत्यादि के खाने से मोटी हो गई हो तथा जिनसे बराबर ठीक से बोला न जा पा रहा हो तो उन्हें दिन में तीन-चार बार एक-एक, दो-दो लौंग चूसना चाहिये। ऐसा करने से जीभ पतली होने लगती है।
कफ निवारण हेतु- नित्य 4-6 लौंग जिसमें से तेल न निकाला गया हो, खाने वाले के शरीर से अधिक कफ निकल जाता है। जिसे बार-बार सर्दी होती हो उसके लिये लौंग का सेवन परम हितकर है !
पाचन एवं आंत्र की सक्रियता हेतु- भोजन के साथ लौंग ग्रहण करने से अथवा लौंग को पीसकर दाल अथवा सब्जी में सीधे ही मिलाकर खाने से अथवा छौंक लगाकर खाने से उत्तम पाचन होता है। इससे आंत्र की क्रियाशीलता में भी वृद्धि होती है। अगर सब्जी का छौंक लगाते समय आवश्यकतानुसार 4-6 लौंग पीसकर डाल दी जाये तो इससे सब्जी का स्वाद बढ़ने के साथ-साथ पाचन भी अच्छा होगा।
गैस अथवा अपाचन में- बहुत ज्यादा गैस बनने की स्थिति में अथवा जिन्हें प्रायः अपच की शिकायत हो उन्हें इस प्रयोग को अवश्य ही करना चाहिये। इस हेतु उन्हें 100-50 ऐसी लौंग लेनी चाहिये जिनमें से तेल न निकाला गया हो क्योंकि लौंग का तेलीय तत्व ही इसमें प्रधान है। इसके पश्चात् एक लाल सेवफल लेकर उसमें उन सभी लौंग को थोड़ी-थोड़ी दूर पर इस प्रकार धंसाना चाहिये कि लौंग के फूल वाले हिस्से (ऊपरी हिस्सा जहां घुण्डी के समान रचना होती है) बाहर रहें। शेष हिस्सा सेवफल में धंसा रहे। इसे 24 घंटे ऐसा ही रखा रहने दें। 24 घंटे के बाद सभी लौंग को बाहर निकाल लें। इन्हें छाया में सुखाकर शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें। इनमें से नित्य 2 लौंग भोजन के पश्चात् लेने से जहां एक ओर भोजन का पाचन होता है वहीं दूसरी ओर गैस की शिकायत नहीं होती है। इस प्रयोग को लगातार करने में भी कोई हानि नहीं है। लौंग समाप्त हो जाने पर पुन: उनका निर्माण कर लें। एक बार में प्रयुक्त सेवफल फेंक दें।
लौंग के तेल का विशेष प्रयोग
लौंग का यह चमत्कारिक प्रयोग मच्छरों को दूर भगाने के लिये है। जहां मच्छर ज्यादा हों वहां एक कागज पर लौंग का तेल लगाकर एक पतले धागे से टांग दें ताकि वह कागज हिलता रहे। ऐसा करने से मच्छर भाग जाते हैं अथवा जो व्यक्ति अपने हाथ-पैरों में मात्र 4-6 बूंद लौंग के तेल की मालिश करके सोते हैं, उन्हें रात्रि में मच्छर नहीं काटते हैं।
लौंग के तेल के चमत्कारिक प्रयोग
स्वास्थ्य की दृष्टि से तो लौंग के तेल की उपयोगिता से अधिकांश व्यक्ति परिचित हैं किन्तु इससे अनेक चमत्कारिक प्रयोग भी किये जा सकते हैं, इसके बारे में कम लोगों को ही जानकारी होगी ! व्यक्ति के सामने हर समय किसी न किसी प्रकार की समस्या अवश्य ही रहती है जिनका भरपूर प्रयास करने से भी समाधान प्राप्त नहीं होता है किन्तु अगर कुछ उपायों का प्रयोग किया जाता है तो समाधान शीघ्र ही हो जाता है। यहां लौंग के तेल से किस प्रकार के उपायों का प्रयोग किया जा सकता है, इस बारे में बताया जा रहा है-
> यह एक यंत्र प्रयोग है। इसके प्रयोग से आपके शत्रुओं का शमन होता है। जब कोई व्यक्ति प्रगति करता हुआ दूसरों से आगे निकल जाता है तो वह न चाहते हुये भी उनकी ईर्ष्या का केन्द्र बन जाता है। इस कारण अनायास उसके अनेक शत्रु बन जाते हैं। ऐसे शत्रुओं का प्रयास उसे किसी भी प्रकार से हानि पहुंचाना होता है। यह यंत्र प्रयोग आपको इस प्रकार के शत्रुओं से बचाकर रखता है। इस यंत्र का लेखन करने का शुभ दिन एवं समय ज्ञात करें अथवा आपके इष्ट के दिवस पर यंत्र लेखन कर सकते हैं। यह शुक्लपक्ष का प्रथम दिवस हो तो उत्तम है। एकान्त कक्ष में स्थान शुद्धि करें। सूती अथवा ऊनी आसन पर इस प्रकार से बैठे कि यंत्र लेखन के समय मुँह उत्तर दिशा की ओर हो। यंत्र का लेखन कोरे सफेद कागज पर काली स्याही से करना है। इसके लिये अनार की कलम का प्रयोग करें। लेखन प्रारम्भ करने से पूर्व अपने मुँह में कोई भी सुगंधित चीज यथा इलायची आदि रख लें। लेखन के समय अपने इष्ट के किसी भी मंत्र का मानसिक जाप करते रहें।
इस यंत्र को बनाकर जहां अमुक लिखा है, वहां उस शत्रु का नाम लिख दें। इसके पश्चात् इस यंत्र पर रूई की सहायता से थोड़ा लौंग का तेल लगा दें। इसके बाद थोड़ा सा कर्पूर जलाकर उस अग्नि से इस यंत्र को जला दें। यंत्र के जल जाने पर बनने वाली राख को मसल कर किसी भी झाड़ अथवा गमले में डाल दें। इस प्रयोग को श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक 10-11 बार करने से लाभ होता है। शत्रुओं का शमन होता है। यंत्र इस प्रकार है-
> शयनकक्ष में नित्य 2-4 मिनट के लिये लौंग के तेल का दीपक लगाने से दाम्पत्य जीवन सुखी होता है। इस हेतु रूई की एक फूलबत्ती बनाकर उसे लौंग के तेल में हल्के से डुबोकर निकाल लें तथा धातु के किसी दीपक में रखकर प्रज्ज्वलित करें और शयनकक्ष में रख दें। यह 5-6 मिनट तक अवश्य जलना चाहिये। नित्य इसी प्रकार से दीपक लगायें। लौंग का तेल महंगा होता है, इसलिये जो लौंग का तेल इतना नहीं जला सकते उन्हें 50 मि.ली. तिल के तेल में 10 मि.ली. लौंग के तेल को मिलाकर उस मिश्रण से ही उत्त प्रयोग करना चाहिये। वह भी लाभ करेगा। इस प्रयोग के परिणामस्वरूप पति-पत्नी में प्रेम बना रहता है, उनके बीच तनाव तथा कलह कम होते हैं। उनका जीवन सुख से व्यतीत होता है।
> यह एक हवन प्रयोग है जिससे आपको अनेक लाभ की प्राप्ति हो सकती है। जिस दिन अभावस्या हो उस दिन पलास वृक्ष की 2-4 सूखी टहनियां ले आयें। यह लकड़ियां वृक्ष से तोड़कर नहीं लानी है अपितु जो अपने आप टूट कर गिरी हों, वही लानी है। ऐसी लकड़ियां वृक्ष के नीचे आसानी से प्राप्त हो जाती हैं। एक रूई की सहायता से उन पर थोड़ा-थोड़ा लौंग का तेल लगा दें। इसके पश्चात् उन्हें हवन कुण्ड में जमाकर थोड़े से कर्पूर की सहायता से जला दें। अब थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कच्चे चावल, शक्कर, घी तथा गूगल लेकर एक स्थान पर ठीक से मिला लें। इस सामग्री की यज्ञ कुण्ड में प्रज्ज्वलित अग्नि में आहुतियां दें। कम से कम पांच आहुतियां अवश्य दें। इस प्रयोग को नियमित 5 अमावस्या तक करें अर्थात् प्रयोग को कुल पांच बार करना है। इसके प्रभाव से निम्नांकित लाभ की प्राप्ति होती है:-
1. जिस घर में यह हवन किया जाता है, उसकी आय में वृद्धि होती है।
2. घर में रोग उत्पन्न नहीं होते हैं।
3. घर के किसी भी काम में बाधा अथवा व्यवधान उत्पन्न नहीं होता।
4. शत्रुओं का शमन होता है। -
5. उस परिवार की मान-प्रतिष्ठा बढ़ती है। यह एक अत्यन्त तथा सरल प्रयोग है, आप इसे आसानी के साथ करके लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
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